राणोजी — ‘मीरां! धण रो धरम है, देय ’धरम’ रो साथ।
सुपनै में सोचै नहीं, पर पुरसां री बात॥’
मीरां—‘सिसोदिया सिरमौर थे, डांटो जुबा चिनीक।
मेड़तणी नै द्यो मतां, धरम करम री सीख॥’
राणोजी—‘कुण डांटी मेवाड़ री, जुबां और तलवार।
‘ठाकर सगळां जीव रा, म्हे राणा मेवाड़॥’
मीरां—‘ठाकर म्हारै जीव रो, सांवळ्यो सिरदार।’
करस्यां व्हांरी चाकरी, होसी बेड़ो पार॥’
राणोजी— ‘मीरां! होस गंवा मतां, मत कर घणी मखोल।
जरा धणी मेवाड़ स्यूं, बोल तोलकै बोल॥’
मीरां—‘सदा बिराजै सोंवणो, मोर मुकट जिम भाल।
राणाजी! म्हारो धणी, बो गिरधर गोपाल॥’
राणोजी — ‘मीरां! मत मारी गयी, बोलै कूड़ी बात।
कद हथलेवै थामियो, गिरधर थारो हाथ॥’
मीरां — ‘भगत सदा भगवान रै, हिरदै रयो समाय।
ओ गंठजोड़ो प्रेम रो, निजरां आवै नांय॥’
राणोजी — ‘पाप कहावै कर्म बो, जो निजरां नहिं आय।
कर्ण सूर्यसुत होय भी, सूत पूत्र कहलाय॥’
मीरां — ‘राणा! भोगै जीव फळ, निज करतां अनुसार।
बिध रो खेल अनंत सा, पाय सक्यो कुण पार॥’
राणोजी — ‘मीरां म्हारी बात नै, मन चायी मत मोड़।
सीधो सट्ट जवाब दे, पास हुवै जै तोड़॥’
मीरां — ‘राणाजी! निज बात नै, दिया करो कुछ तोड़।
भै’स बधाऊ रो हुवै, तोड़ दियां ही ’तोड़’॥’
राणोजी — ‘मीरां! मुड़ पाछी जरा, धर घ्रिस्ती में ध्यान।
छोड़ ढूंढणो बावळी! भगवां में भगवान॥’
मीरां — ‘राणा! नैणा में रम्यो, म्हारै तो नंदलाल।
बीं नै छोड्यां नीं सरै, भगत बछल गोपाल॥’
राणोजी — ‘मीरां! किण दुख कारणै, छोड्यो सुख संसार।
जरा बताओ तो करां, म्हे कोई उपचार॥’
मीरां — ‘प्रेम दीवानी मैं भयी, दरद नीं जाणै कोय।
अब तो दरद तदी मिटै, बैद सांवरो होय॥’
राणोजी — ‘मीरां! मदन मरोड़ जद, हिवड़ै लेय हिलोर।
कठै चितारी मिनख री, बहक्या ढांढा ढोर॥’
मीरां — ‘राणा! काळी कामळी, चढै नीं दूजो रंग।
म्हे तो अब जीस्यां मरां, सांवळियै रै संग॥’