भोडल दीप न दुरै पुन: पानन के खाये।
घास घुसेरी आगि छिपै नहिं सौंधा लाये॥
जल तर सीसी माहिं पानि पातर सु लखावै।
अमल न छाना होइ निरखि जब नख सख आवै॥
अंत फटकरी उघड़ै जन रज्जब जल मह जथा।
तैसी बिधि मन माहिली बाहरि दीसै है तथा॥