दिल्ली सिकन्दर साह, दे परचो परचायौ।

महमंद खांन नागौरि, परचि गुर पाए आयौ।

दूदो मेड़तियो राव, आय गुर पाय विलग्गो।

रावल जैसलमेर, परचतां सांसौ भग्गौ।

सांतिळ सनमुखि आय, सुचिल तां हुवौ सिनानी।

सांग रांण सुण्य सीख, जका गुर कही सै मानी।

छव राज्यंदर के के अवर, आचारे औळखियौ।

वील्ह कहै मांगौ पुन्ह, जांह मुगति नै हाथो दीयौ॥

दिल्ली के बादशाह सिकंदर को परचा देकर विश्वास दिलाया, महमद खां नागौरी भी विश्वास करके गुरु की शरण में आया, मेड़ते का राव दूदा ने भी गुरु के चरणों में आकर नमन किया, जैसलमेर के रावल जैतसी ने भी गुरु पर विश्वास किया, जिससे उसके सब कष्ट दूर हुए, जोधपुर का राव सांतिल भी गुरु के सम्मुख आकर शुद्ध मन से नित्य स्नान का नेम लिया, मेवाड़ के महाराणा सांगा ने भी गुरु की शिक्षा को शिरोधार्य किया, इन छ: राजाओं और कई अन्यों ने भी जाम्भोजी के नियमों को ग्रहण किया। कवि वील्होजी कहते हैं कि मैं तो ऐसे गुरु से मुक्ति प्राप्ति का पुण्य मांगता हूँ।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय
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