धर उर मैं रिधि रहत प्रगट मस्तग मधि दीपै।
सांच न दुरई दिब आप अगनी नहिं छीपै॥
होय ऊत घरि पूत जथा जीतै जु जुवारी।
कहु क्यूं गोये जाहिं महा मंगल मन भारी॥
सिध संकट आगे खड़ी सकति सिद्ध सो आठ की।
रज्जब छिपै न माहिली जैसै रसना पाठ की॥