कंवळि सीप जळि जुदे बसहिं मणि ज्यूं मुख माहीं।

बड़वानल पुनि बीजि बारि मधि भीजहिं नाहीं॥

दरपण मैं प्रतिबिम्ब सुन्नि सबही घटि न्यारी।

लोई रंगै सूत देखि अचरज है भारी॥

अठार भार अगनी रहित सूर सलिल ले दे जुदा।

यूं रज्जब साधू सुकति मिले अनिल पाया मुदा॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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