काफिर ईमा नाहिं जिमी जाहिर जग जानै।
जलहू दीसै जुदा पेखि काकै पखि पानै॥
अगनि उभै गुण रहित करहु कुछ ज्ञान बिचारा।
मारुत मद्धि सरीर निरखि निरपखि निज न्यारा॥
रज्जब रवाहि आकास रुख तौहीद इलम पढ़िये वरक।
इन पंचौ सौं प्यंड यहु तौ क्यूं कहिये हींदू तुरक॥