नमो आदि अविगत, अगम हो आप अरूपी।

अवरण सदा अथाह, लहे कुण थाह स्वरूपी।

ब्रह्मसार निरकार, परापर नूर पियारो।

वसो सर्व जहं बास, नाथ निज आथि नियारो।

अण देह अखंड अजन्म, अलख आप आप सम आचिये।

हरिदेव सामसस्तुति निज, वायक तन मन वाचिये॥

स्रोत
  • पोथी : श्री हरिदेवदास जी महाराज की बाणी ,
  • सिरजक : संत हरिदेवदास महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सिंथल, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै