गुरु दाता निज ज्ञान, ब्रह्म सता विधि वाचे।
अनुभव दत्त अपार, लेह शिख जाचक जाचे।
भक्तिसार सोई वाच, वयण कर देह विचारा।
गुरु यह गम गंभीर, कुरंद अघ मेटण हारा।
आत्म कला ऐसी अगम, सुगम करे संपति सची।
हरिदेव सिखां आनंद सरस, वंदन गुरु या विधि बची॥