गुरु बिन भक्ति भेव, गुरां बिन जुक्ति अजुक्ति।

गुरु बिन सिख ना सुखी, परम गुरु बिन ना मुक्ति।

गुरु बिन सुधि सार, पार गुरु बिना पहुंचे।

गुरु बिन किरिया कूर, नाहिं गुरु बिना सुनिहचे।

गुरु बिन काय ह्वै गमा, शून्य समा गुरु बिन सिको।

हरिदेव कहे गुरु बिन तिके, जग जल बुहा नर जिको॥

स्रोत
  • पोथी : श्री हरिदेवदास जी महाराज की बाणी ,
  • सिरजक : संत हरिदेवदास महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सिंथल, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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