हरि गहरा गंभीर, धीर हरि समां न कोई।
सीर सुधा निजसार, पीर पर जाणै सोई।
हरि दीरघ दीदार, पार हरि नको पुणीजे।
हरि विराट हकीम, महा निज मूल सुणीजे।
हरिसमा आप हरि है सही, पाप जीव करि है परा।
हरिदेव बाप सबका अगम, ताप तुरंत मेटंतरा॥