गुरु है दीन दयालु, करे शिख पाल सदाई।

आखै भक्ति प्रसंग, सदा सेवक सुखदाई।

गुरु पावन गुरु परम, जीव शिख जीवन जानों।

गुरु का गुण गंभीर, दिपे रस राम दिवानों।

गुरु समां आप गुरु है, गहर मिटे सर्व जग वासना।

महाराज गुरां प्रणामुं तुझे, यह हरिदेव उपासना॥

स्रोत
  • पोथी : श्री हरिदेवदास जी महाराज की बाणी ,
  • सिरजक : संत हरिदेवदास महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सिंथल, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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