मोख खमो खम कंद निगुण निरपख नरेसुर,
निरालंब निरलेप अध्रम अछेप सुरेसुर।
चिदाणंद बह चतुर आप विणि पार अमूल,
सास आस विणि सदा एक एकु असतूल।
अण मरण ग्यान अण कसट अंश अति उद्यास अनाथ अति,
अखंडित रूप अवरण अलख सरब भूति आधार सति॥
सरब भूरति साधार विसव मूरति निसवादी,
आदि पुरुष अविणास आदि बाहिरौ अनादी।
आदि अगादि अनंत आदि हुंतो औ आतिम,
तु अरेळ अपरेत प्रभु अचेत पुरातम।
विगन्यान ग्यान तुं हिज विपति तुं अछेद अभेद तन,
अविगत नाथ केवल अलख, पाप निही तुं कोइ पन॥
पन प्रकास अविणास अलख उद्यास अपंपर,
सरब वास बसास आस पूरण अति अमर।
दास दास लीला विलास निगुण ग्रभवास निवारण,
ग्रब प्रास निसचरां नास इळा अघ जास उतारण।
किणि ठौड़ि रहै जायौ कठै घणी पहचि दातार घण,
विणि रूप रेख किणि दिसि वसै निमो निमो तुं नारीयण॥
नमो नमो नारीयण इना किम जीव उपाया,
अकळ बुध्दि अहंकार नमो नर नारि निपाया।
कीयौ पाप पुनि कीयौ च्यारि खाणै वाणै चत्र,
कीया सुख दुख कीया अनिलि कीधौ कीधौ अत्र।
त्रैभुयण कीया किम करि त्रिगुण जवन देवि सरि जाईया,
आदेश नमो तोबह अनंत इतरा भूत उपाईया॥
इतरा भूति उपाय एक नवि इंद्री उपाया,
दस इंद्री दस देव परम करि धणी पठाया।
देवा इंद्री दुमेळ कीया भेळा करणा करि,
तूं सबळौ ताहरै सरब वसंता एकण सरि।
निगम ही क्रीत मारणो नहीं किसौ पार अणपार किरि,
ताहरै डील सबळौ त्रिगुण पग पाताळ स्रगलोक सिरि॥