अलख आप अणरूप, पलक में विश्व पसारै।

करण आप कल्याण, देव कारज उन सारै।

समर्थ नाम सचाह, थाट ऐसो जग थाये।

घट मट एह आकार, करे हरि सहज किताये।

आतम आप आपे सहित, रूप शक्ति ये ही रचे।

हरिदेव ताहि प्रणाम्भे सरस, साहिब हो साहिब सचे॥

स्रोत
  • पोथी : श्री हरिदेवदास जी महाराज की बाणी ,
  • सिरजक : संत हरिदेवदास महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सिंथल, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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