भोर के ही भाल पर कूकूं का तिलक पर,
स्वागत तुरत कर,कोटड़ी बिठाइये।
मान कर बार बार हाथ को हिलाय कर,
अमल सूं खोबा भर भानु को पिलाइये॥
प्रीत को बुलाय कर प्रेम को दुलार कर,
नेह से निखर कर खीच भी खिलाइये।
अहम को तजकर मन को मधुर कर,
भ्रात से पियार कर मुख को हंसाइये।