भोर के ही भाल पर कूकूं का तिलक पर,

स्वागत तुरत कर,कोटड़ी बिठाइये।

मान कर बार बार हाथ को हिलाय कर,

अमल सूं खोबा भर भानु को पिलाइये॥

प्रीत को बुलाय कर प्रेम को दुलार कर,

नेह से निखर कर खीच भी खिलाइये।

अहम को तजकर मन को मधुर कर,

भ्रात से पियार कर मुख को हंसाइये।

स्रोत
  • सिरजक : कमल सिंह सुल्ताना ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी