जिण वासग नाथियो, जिण कंसासुर मारे।

जिण गोवल राखियो, अनड़ आंगली उधारै।

जेण पुतना प्रहारी, लिया थण खीर उपाड़ै।

जिण कागासर छेदीयो, चंदगिर नावै चाड़ै।

एतला परवाडा़ पूरीया, अवर प्रवाड़ा प्रभु सहै।

अवतार वेद जंभ तंणौ, कान्ह तंणै अवतार कहै॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान ,
  • सिरजक : कान्होजी बारहठ ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, पुरस्कार ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै