माला इक तुलछी की दूजी माला रुदराक्ष,
तीजी माला सुत ग्रंथि चौथी वन माला है।
पांचवीं फटकमणि जीया पोता छठि सुणि,
सातवीं कपूर मोती आठवीं रसाला है।
वैष्णों तुरक जैन जगत जपत जाप,
इनके फिराये जम करत न टाला है।
श्वांसो श्वास सोहं जाप कहत बालकराम,
माला सोई आला जाके साच सील चाला है॥