हेरि हिवांलै गलहिं होहि पुनि झम्पा पाती।
संकर सेव सु करैं सीस काटैं निज काती॥
कासी करवत लेहिं कठिन कूंडी सु करावैं।
काष्ठ भखहिं भैभीत देखि देही सु जरावैं॥
सकल कष्ट हद मीच लग आदम सो सब आदरै।
रज्जब राम न पाइये बिन आखिर एकै ररै॥