पंच अगिन तन सहै सीत बरिखा जल माहीं।

ऊभा द्वादस बरख बसेख सु बैठै नाहीं॥

ऊंधे घोटै धोम नगिन व्है देह जरावहिं।

अठ सठ तीरथ करैं देइ दहणा रथ आवहिं॥

अज्ञान कष्ट आतम परी गुफा सु बन कौं ध्याइये।

जन रज्जब निज नांव बिन निरालंब नहिं पाइये॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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