फक्कर जात खुदाइ तुरक हींदू न कहावैं।
पारस तांबा लोह नांव सोना मिलि पावैं॥
निरपखि मोती होइ पेखि पंखि सीपहि न्यारा।
पणि उपजै मुखि सर्प जहर जोड़ै सु मझारा॥
कलम अंटु कुल दोइ नित अलिफ अतीत अलाहिदा।
बीज दालि रज्जब सु रबि व्है अंकूर फल दिसि बिदा॥