भोर पति संग ते ससंक अंक ‘जोर आली’,
बैठी सखियन साथ छबि साथ टूटी हैं।
छूटैं कल अलकैं बिछूटै नैंन स्यामताई,
ओठ ‘रदन-छंद’ सौ ‘सबै जात लूटी हैं’,
ता छबि निहारि आंखै ‘हसी अनहसी हसी’,
हसिबे कौं भई ताकी उपमां यौ जूटी हैं।
रबि के उदैतैं मांनौं सब वे सरोजनी सी,
खुली अधखुली एंकै खुलैं एकै खूटी हैं॥