अठार भार इक अगनि एक धूवां इक धरनी।

एक सु मधुपै एक बनी तंबा बहु बरनी॥

एक बहनी बहु दीप अनंत आभौ एक पानी।

कुलि भूषन गरि कनक पात्र पहुमी नहिं छानी॥

चतुर बरन षट दरसि मधि एक रूप एकहि मिले।

रज्जब यह समिता सुरझि समझे साध सु मिलि चले॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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