सज सोळा सिणगार, सत्तव्रत अंग-अंग साहे।

अरक बार मुख ऊग, नीर गंगाजळ नाहे।

चीर पहर, अस चढे, केस वेणी सिर खुल्ले।

देती परदक्खणा, हंसगत राणी हल्ले।

सुर भुवण पैस पहुंता सरग, साम तणौ मन रंजियौ।

रूसणौ मालदे राव सूं, भटियाणी इम भंजियौ॥

स्रोत
  • पोथी : उमादे भटियाणी रा कवित्त ( प्राचीन काव्य) ,
  • सिरजक : आशानंद बारहठ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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