जलम स्यूं मरबा तक रो टेम
किणी तरै पूरो कर दैणो ईज जिन्दगी व्है।
हंसबा ऊं रोबा तक
रोबा ऊं हंसबा तक
खेलबो अर खाणो
काम धन्धा अर सोबा को आराम,
जिणनै जिन्दगाणी री संज्ञा देवौ।
अठिनै अभावां स्यूं लड़तो
अणपढ़ गरीब किसाण,
परकरती रो सतायोड़ो,
सिरकार रो ठुकरायोड़ो,
वरग समाज सूं न्यारो
बैठ्यो झूंपड़ी रै मांय,
मिनखपणो निहारे (निरखे)
आ ईज है के जिन्दगी...!
अर,बठीनै पइसां वाला
भोग बिलास में लाग्योड़ा
घमण्ड में इतरावता
छाती फुलाय र चालणवाळा...
यौ भी एक जीवण व्है,
आखरी जिन्दगी कै बला है...?
जकी आपरो न्यारो मातम राखै...
आतमा री पीड़ा स्यूं थाक्योड़ो मिनख बोल्यो—
समाज रो भलो करबो ही
जिन्दगी नै प्यार करणो है
ईं को नाम है जिन्दगाणी...!