(अेक )

गांव की
सब सूं ऊंची मेड़ी पै
उभौ हो'र देखतौ
जद-जद बी गांव
गांव कमती
स्हर बदतौ लागतौ।

(दो)

घर बारै
चबूतरी सूं
कद सूं पाड़ रह्यौ छूं हाका-
'कोई छै कै?
छोरी... छोरां...
पाणी को लोठ्यौ भर दै
तसाया मर रह्यौ छूं!

(तीन)

न्हं पछाण्यौ कै थनै?
कद आयौ कोटा सूं..?
था कुण छौ..?
थारा भाईजी की मावसी को छोरो।

( चार )

गांव
यां दिनां
हांसै छै कै रोवै छै
काई बदी न्हं लागै
घणा दिनां सूं
बैदजी बी बैमार बताया
फेर चोखो कुण छै!
गांव में
पटेलजी कै स्वाई।

(पांच )

काल्ह
जाती दिखी छी
पटेलजी कै पळसै
आज सुणी छै
थाणै पूगी छै रपट लिखाबा
काल्ह फेर
पटेलजी का छोरां के धमकाया
खसम आवैगो
रपट फड़ाबा।

(छह )

बैंक नै
आधा गांव की
भीत्यां पै चिपका दया
कुड़की का नोटिस
वां ताई
बंध जावैगी
न्हं जाणै कतनी सनैत्यां
ज्यां ताई
धौळा पानां सूं उडैगी
काळी स्याही
यौ कुण छै
जै कह रह्यौ छै
गांव घणा
साता में छै यां दिनां।

स्रोत
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़