वो 'कठैई' जठै म्हैं कदैई नीं पूग्यौ, किणीं भी लखांण रै
उण मुघरै छेड़ै
थारी आंख्यां रौ मून है
थारी स्सै सू कंवळी काची लांकां में कीं अैड़ौ है जिको
म्हनै चारूमेर सूं मींच लेवै
के उणनै म्हैं परस ई नीं सकूं बौ इत्तौ मावौमाव है
थारी हळकी सीक निजर म्हनै सोरौ-सोरौ खोल न्हांखै
जदके म्हैं खुद नै मुठ्यां ज्यूं भींच मेल्यौ हूं
थूं म्हनै अेक अेक पांखड़ी कर् र खोलै जीयां के चैत
उघाड़ न्हांखै (अेक सावचेत रहस-परस सूं)
आपरौ पैलौ गुलाब
के जे थूं म्हनै मींचणौ चावै म्हैं
अर म्हारौ जीवण सावळ सातरा मींचीज जावांला चाण चुकां
जीयां औ फूल जद इणनै चेत आवै
चारूं मेर सूं होळै-हौळै पड़ती ओस रौ
की अैड़ौ नीं है म्हारी निजर में के सगळी दुनियां में
जिकी बरोबरी कर सकै थारी छेली कंवळाई री
अकूंती ताकत रौ
जिण रौ परस म्हनै खाली हाथां कर न्हांखै आपरा विवध
ठाया ठाणां रा ऊठता पड़ता रंगां सूं
जिण री हरेक सांस में मिरतू अर अणन्त काळ मुंडागै आवै
(म्है नीं जाणूं के वौ कांई है थारै में जिकौ मींचै
खोलै, कोरौ औ के म्हारै में कीं है जिकौ
समझै, थारी आंख्यां री अवाज सगळा गुलाबां सूं
अथाक है)
कोई नीं, अठै तांई के बिरखा री छांटां री हथेळ्यां
भी इत्ती नैनी नीं व्है।