किला, म्हैल, मिंदर

सगळा थां रा तो निजराणा हा

जोधा पण थे हा

जितरा स्वयंवर होया

कै होया हरण

थे जीत्या हा सगळा जुध

जिया तो थे

मर्या तो थे

अमर इतिहास पुरुस।

अेक बस जौहर री सैनाण बाकी है

कांकरां मांय कांकरा बण्या हाड़

हरम रै हरामीपणै मांय

सांस लेवती हिचक्यां।

थारा सिरपेच सदा ऊंचा

खंभा माथै झूलती

मूंछ मरोड़ती मुळक

हरमेस कायम।

आज तांई जीवै

जौहरां बळतै चाम री बास

सतीपणै री कथावां मांय

किणी रै मिनख होवण माथै सवाल

अजै सिळगै।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : चैन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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