म्हारै मांय सूं

कीं घणो पावण री होड थांरी ही

अर थे हा, जका

रच्या हा म्हारे खातर परकोटा

लायण, बापड़ी, भोळी, अबळा जिसी उपाध्यां

अर

कर लीन्हों आप रो धणियाप

जद भी सुपनां देख्या

उडण री सोची

कतर दीन्हां पर

खूंटे सूं बांध दी

जियां

कोई चिड़ी

कोई गाय

अर

जद भी कीं केवणो चायो

म्हेल दी होठां पर आंगळी

सेन कर दी मून रैवण री

फगत इण वास्ते

थे चावो

नीं बोलूं म्हैं

बोलूं अजादी चाइजै?

उठाऊं झंडा

अर

उतरूं सड़कां माथै

क्यूंके चावनां है थांरी

धापग्या हो थे?

परकटी चिड़कली

अर

खूंटे बंधी गाय सूं

धिन है थांनै?

पण सुणो,

घिन है म्हांने

थांरी सोच सूं

जाणां हां म्हैं

म्हांरी आजादी रा अरथाव

जाणां हां फगत

थां सूं मुगत हुयां

नीं मिळै ली म्हांनै आजादी

माने असली आजादी।

स्रोत
  • पोथी : पैल-दूज राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : सीमा भाटी ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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