ओस चाट रैयी है जीभ

बीयाबाण मांय भटकीजतो आतमो

तिरस्यां मर रैयो है!

अर बणरायी उपरां-

ओसरयोड़ी है ओस!

मनै चेतो नीं है: मैं हूं बेहोस!

अजेस तो गिणती रा पांवडा-ई भरीज्या है

वींनै चालणो है-

कोसूंकोस

तिरस्या होठ गावण नी सकै गीत

जिणनै सिरज रैया है-

जीवण रो संगीत

जिको उकसाया करै गीत नै,

बो सरणाय उठयो है म्हारै घट मांय

अेक सितार गरणाय रैयी है!

अेक बांसरी बाज रैयी है!

अेक मिड़दंग गूंज रैयी है!

अेक डमरू डमडमाय रैयो है!

अर जाणै—

के ठा‘ कितरा-न-कितरा भांतभंतीला बाजा

उठाय रैया है

उण संगीत नै

जिको म्हारै मांय उमट रैयो है!

सातूं-सुर-

इक्कीसूं-मुरछावणां समेत

म्हारै रूं-रूं उपड़ीत रैया है

पण तिरस्या होठ

सूखो-कंठ नीं उंगेर पावै गीत नै

कोरो संगीत-ई-संगीत

अणहद बण्योड़ो है!

मैं मांय-ई-मांय गायां जावूं

सांभळतो भी मैं-ई जावूं!

ठौड़-ठौड़ उपड़ीज रैया है भंबूळिया

तप रैयो है उपरां सुरजी

जठीनै-ई मुड़‘र जोवूं मैं

बठीनै-ई

ओर-छोर बिहूण-

मरूथळ

नी अेक पानको

नीं अेक छांट पाणी!

च्यारूंमेर तपत‘र बळतेड़

मांय-मांय उठती उमेड़!

अबार

जिण बणरायी नै

मैं पार करी है

उणरै उपरां

पसरयोड़ी ही ओस!

जीभ

उणनै चाटण री चेष्टा करी ही

पण अबुझ रैयगी म्हारी तिरसा

मनै

म्हारै खुद रै उपरां-ई दया आवै!

मैं निरूपाव हूं....

कोई नीं बतावै

मैं किस्यो भाव हूं?

इणभांत मैं खुद-सूं-खूद

अणजाण हूं!

क्यूं‘क म्हारो गीत

अजेस अणगायो है!

म्हारो गीत-ई म्हारी ओळखाण है!

पण ज्यां गीतां नै

मैं गाय चुक्यो हूं,

बै

म्हारी पिछाण क्यूं नी बण सक्या?

मैं खुद-नै-खुद बूझ रैयो हूं!

म्हारा पग रूपग्या है

मैं आगीनै नीं सरक पावूं हूं

म्हारा होठां उपरां फेफी आयोड़ी है

पण आंख्यां मांय

कोई रंगत छायोड़ी है!

अर मनै लखायीजै

अठै री हरेक बात म्हारी गायोड़ी है!

अनेकूं उणियारा

सरजीवण होवैः

मैं सती नै कांधै उपरां उंचक्यां-

घूम रैयो हूं!

मैं नारद री ज्यूं

दरपण नै चूम रैयो हूं!

सीता री सुध मांय

बावळो-सो मैं

दिगन्तां नै हेला मार रैयो हूं!

राधा नै बुलावण सारू मैं

म्हारी बांसरी नै चूम रैयो हूं!

लोग म्हारै उपरां भाठा बगाय रैया है-

क्यूं‘क मैं लैला नै ढूंढ रैया हूं!

इणभांत, मैं बारम्बार हार रैया हूं!

मैं देखूं हूं—

म्हारा सुपनां रा भटकीजता भूत

म्हारौ सामै ऊभा है

म्हारै खिलाफ बै आन्दोळण कर रैया है!

बै देखो!

बै नारा लगाय रैया है:

‘इन्कलाब-जिन्दाबाद!’

बां-मांयलो कोई भाषण देय रैयो है!

अबै नीं गायीजै

म्हारै सूं बारम्बार

मेघदूत नीं गायीजै!

नीं गायीजै!

पण मैं कियां उंगेरू...

तिसायै-कंठ बो गीत?

जिकै रो संगीत

म्हारै मांय सरणाय उठयो है!

मैं अेक अणगायै-गीत नै लियां फिरूं हूं!

स्रोत
  • पोथी : कूख पड़्यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकांत ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन, रतनगढ़ राज. ,
  • संस्करण : प्रथम
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