म्हैं बगत!

म्हारै अणसारै

चालैआखो जगत!!

घड़ी री टिक-टिक सागै

बधती रेवै जिनगाणी।

हियै मांय लियां हूंस

आंख्यां मांय लियां आस

नित नूंवी लियां

ऊरमा रा भाव

पग मांडण करती

रेवै जिनगाणी।

पण अेक ठोकर

थाम देवै

जिनगाणी रा पग

ज्यूं घड़ी रा खतम हुवै सैल।

अटक जावै सुइयो

हो जावै मून

जिनगाणी रा भाव।

घड़ी थमै

आपरै करमां लेखै

पण थूं क्यूं थमै

जिनगाणी?

बिसाई खा

सोच-विचार कर

खुद माथै राख पतियारो,

कर भरोसो

अर

पाछो सागो कर म्हारो...

क्यूं कै

म्हैं बगत...

म्हारै अणसारै

चालै

आखो जगत।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : नमामीशंकर आचार्य
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