सरणै हुल्कर जसवन्त राव,

जद भूप भरतपुर रै आयो।

सळ पड़यो भँवाराँ, रीस करी,

गोराँ परवाणो भिजवायो॥

जसवन्त करी है जबराई,

गोराँ पर हात उठायो है।

अँगरेजाँ रो अपराधी है,

थाँरै गढ सरणो पायो है॥

म्हे सुणी भूप तैं अभै कियो,

भली नयीं है भुरजाळा।

टूटैली सँधी जे बणस्यो,

म्हाँरै बैरी रा रखवाळा॥

अँगरेजी बळ है अण तोल्यो,

भारत रा भूपाँ जाण लियो।

सत्ता है बड़ी फिरँग्याँ री,

गढ पतियाँ लोवो मान लियो॥

हुल्कर नै करो हवाळै थे

उळझो मत उळटो चालाँ में।

अब पळकै बो पाणी कोनी,

भूपत भारत रै भालां में॥

गोराँ रो खाँडो भारी है,

जाटाँ स्यूं चोटाँ झलै नयीं।

अँगरैजी राज हिन्दीयाँ री,

बा पोंगा पंथी चलै नयीं॥

धरम रवै नयीं राजाजी,

सरणा गत री पत राखण रो।

राखोला जूनी परम्परा,

तो नूँतो मन्याँ रण रो॥

जे चढ ज्यासी गोरी फोजाँ?

तोपाँ स्यूँ कोट खिंडा देसी।

जाटाँ रो माण मसळ देसी,

हुल्कर नै बन्दी कर लेसी॥

लसकर उमड़ैलो अणगिणती,

टूटै ज्यूँ बाँध समन्दर रो।

अँगरेजी धज आभै अड़ गयो,

कितरो है मोल भरतपुर रो॥

ओकात भूलज्यो मत राजा,

मिटताँ रा पता नयी लागै॥

म्हाँ मिट दिया है कितरायी,

अड़ियोड़ाँ नै आगै-आगै॥

थे हुकम पूगताँ यी म्हाँरो,

हुल्कर बंधियो भिजवा दीज्यो।

नयीं तो भुगतोला घणी बुरी,

होस हिंये करवा लीज्यो॥

गोराँ रो खारो परवाणो,

लाट लेक भिजवायो हो।

जाणै जाटाँ नै कूँतण नै,

अँगरेजी काँटो आयो हो॥

राता होग्या रणजीत सिंघ,

महाराज होठ नै चाब लियो।

अपमान भर्‌योडी अै बाताँ,

गोराँ भारत नै दाब लियो॥

घर-घर में फूट घला दीनी,

लड़वा दिना उमरावाँ नै।

अै मँगता पोगा पँथ गिणै,

भारत री परम्परावाँ नै॥

महाराज कयो सिरदाराँ नै,

दरबार भर्‌यो है भायाँ स्यूँ।

तीखा है बोल फिरँगी रा,

नयीं रवै स्यान दब ज्यायाँ स्यूँ॥

खाँडो खोसण नै आवै है,

अपजोरा जाटाँ रै कर रो।

बैरी बूझै है आज खड़्या,

कितरो है मोल भरतपुर रो॥

रजपूती तोलण जाटाँ री,

गाजै है गोरो परदेसी।

मरजाद आण आँपणली नै,

दुनियाँ री आँख परख लेसी॥

बा आण जकी नयीं झुकी कदै,

गजनबी जिस्यो लूँटण आयो।

तैमूरलंग रो पग धूज्यो,

जद जाटाँ अड़ खाँडो बायो॥

बाबर रो बळ भय खावै हो,

बै भाला है आँ हाताँ में।

अँगरेज डराया चावै है,

आँपांनै रण री बाताँ में॥

म्हाँतो मरणै री धारी है,

गोराँ रो घमंड नयीं राखाँ।

सरणागत हुल्कर अभै कियो,

जीवंतड़ा नेम नयीं नाखां॥

पण बूझाँ थानै सिरदारां,

थाँरा मनड़ा काँयी चावै।

खुल्ली कह दै बो अंस जाट,

जे तोपाँ आगै भय खावै॥

जद जोस भर्‌योड़ै बोलाँ में,

सिरदाराँ रो उथलो आयो।

‘गोरां’ रो फूस खिंडा देस्याँ,

दरबार भरतपुर गरणायो॥

महाराज दूत नै भिजवायो,

लिख दियो लेक नै परवाणो।

दुबळा समझैलो जे म्हांनै,

तो तनै पड़ैलो पिछताणो॥

सूरज रो बंस तपै तातो,

जद तरवाराँ तण ज्यावेली।

थाँरोड़ी फोजाँ समद जिसी,

चुस छीलरियो बण ज्यावैली॥

जाटाँ री चोट पड़ैली जद,

मुट बोला इस्या रैवोला।

हिड़क्योड़ै जियाँ हाँफ ज्यासो,

जद गढ पर घेरो देवोला॥

भारत रा भोळा वीराँ नै,

हो बाताँ में भोळावणियाँ॥

भूखाँ मरता थे आयोड़ा,

बणग्या कद खाँडा बावणियाँ?

हो सात समन्दर परियां रा,

कुण पंच बणाया है थानै।

कपटी सिरकार कम्पनी रा,-

-चाकर, धमकावो थे, म्हानै!

जद कूद अखाड़ै म्हे उतराँ,

भालाँ रो पाणी पळकै लो।

ऊँचो आभै स्यूँ अड़ियोड़ो,

धज धरती कानी ढळकैलो॥

हुल्कर है म्हाँरै सरणै में,

मरियाँयीं थानै मिलै नयीं।

गहरी है नींव भरतपुर री,

खसताँ थाकोला, हिलै नयीं॥

जाटाँ री आण दबै कोनी,

गोराँ वाळै खाँडै नीचै।

गादड़ री मोत बुलावै जद,

बो गाँवां कानी पग खींचै॥

रणजीत भूप रो भेज्योड़ो

परवानो जद गोराँ पायो।

बो लाट लेक जबरो जोधो॥

मोटै दळ-बळ स्यूँ सज आयो॥

गढ घिरयो फिरँगी फोजाँ स्यूँ,

चौड़ै मुँह री तोपाँ दागी।

जाटाँ री तोपाँ रो उथलो,

जाणै साँवण री झड़ लागी॥

दिन रात गड़ागड़ गाज रयी,

सिर सेस नाग रो हालै हो।

जाटाँ रो जबरो ‘धूड़ कोट’,

गोराँ रा गोळा झालै हो॥

आधी राताँ रै अँधारै,

छळिया छल स्यूँ नैड़ा आया।

गढ वाळी तोपाँ तेज हुयी,

अँगरेज मना में घबराया॥

घात्याँ री घात गयी खाली,

नयीं कपट चलैलो जाण लियो,

धोखे में जाट मरै कोनी,

गोराँ रो हियों पिछाण लियो॥

उण मैट सैन्ड सैनापति री,

जद दळ-दळ में सेना फसगी।

साँसा पड़गया जींवण रा,

हमलै री बाताँ बीसरगी॥

जाटाँ रा जबरा हात देख,

अँगरेज भूलग्या चतरायी,

कितरा मरग्या पड़कोटै पर,

कितरायी नै खागी खायी॥

भालाँ में छुर्‌याँ कटारयाँ में,

गोळी गोळाँ री लड़ झड़ में।

फस होस फिरँग्याँ रा उडग्या,

गढ ऊपर मची तड़ातड़ में॥

गोळी खा गुड़क्यो मैट सैण्ड,

गया मनखा चोड़ै हा।

चित उठिये ज्यूँ हिड़कायोड़ा,

हार्‌योडा गोरा दोड़ै हा॥

मेजर कपतान मर्‌या कितरा,

आधी फोजाँ बिछगी रण में।

जद लेक कयो हूँ इसी हार,

नयीं खाई आखै जीवण में॥

दस दिन सुसताया चढ्या दूसर,

कूटीज्या धणा घिर्‌या पाछा।

मोटा अफसर रण खेत रया,

गोराँ रा गिरै नयीं आछा॥

बोलै हो ऊभो लाट लेक,

फोजाँ रै सामो जोस भर्‌यो।

आज दूसरी बार सुणी,

जाटाँ सामो अँगरेज डर्‌यो॥

गोराँ री स्यान घणी ऊँची,

अै छाँटा कोझा लागै है।

है घणी लाज, मुट्ठी भरिया,-

-मिनखाँ आगै दळ भागै है॥

दो बार हार, हाणी मोटी,

पण फेर चढायी करणी है।

बदनामी री खायी खुदगी,

आँपाँनै पूठी भरणी है॥

मर ज्यावाँ तोयी मुड़ा नयीं,

धार्‌याँ पूरी पावाँला।

गढ जीत्याँ बिना लाख बाताँ,

जीता पाछा नयीं आवाँला॥

आखी धरती नै तोलणीयाँ,

छोटै सै राजा स्यूँ हाराँ!

अँगरेज तेज तपधारयाँ नै,

लाज घणी है मोट्याराँ॥

कै लेक तीसरी बार घिर्‌यो

फोजाँ गढ कानी चलै ही।

जाटाँ वाळी तीखी तोपाँ,

गोळा स्यूँ धरा उछालै ही॥

उण देवनरायण पोळ खनै,

सैनापति ‘टेलर’ चढ आयो।

जमवाली जाड़ाँ जा लाग्यो,

जद जाट अड़्या खाँडो बायो॥

मेजर जनरल सर ‘जोन्स’ जको,

मुंबई स्यूँ मदत करण आयो।

सैनापति ‘डन’ गढ़ भेदण नै,

बै आसूदी फोजाँ लायो॥

पण जाट लड़ै हा भूत जियाँ,

कायर रा पता कठै लागै।

सोनापति कवै बधो आगै,

फोजाँ डर स्यूँ पूठी भागै॥

पग आगै धरै पड़ै पाछा,

बो दुरग दिखै हो मोत जियाँ।

मुख खुल्या काल सी तोपाँ रा,

भागै हा गोरा प्राण लियाँ॥

सैनापति दौड्यो जीवण ले

जबरा हा वीर भरतपुरिया।

छळ बळ बैरयाँ रो चलै नयीं,

बाँ मार भोगना भुँवा दिया॥

हार इसी है ‘लेक’ कयो,

इतिहास कळँकित कर नाख्यो।

मोट्याराँ बात घणी माड़ी,

थाँ पाणी रती नयीं राक्यो॥

ब्रिटिस रै लागै बट्टो,

धोयाँ स्यूँ काळख धुपै नयीं।

छोटै सै राजा छका दिया,

बात छुपायाँ छुपै नयीं॥

इस्यो, भरोसो कोनी,

थाँरो पुरसारथ थक ज्यासी।

म्हाँ जाण्यों म्हारो मोटो दळ,

चुटक्याँ में भूप पकड़ लासी॥

पण थाँ नाखी अहड़ी नीची,

म्हे आखी उमर लजावाँला।

सामै सिरकार कम्पनी रै,

जा माथो कियाँ उठावाँला॥

नयीं हुई कदै इण धरती पर,

बा अणचींती है आज हुई।

‘रण जीत सिंध’ री रजपूती

अँगरेज कर दिया छुईमुई॥

जे जाट सूरवाँ लूँठा है,

गढ जबरो जीत नयीं पावाँ।

तो एक बात बाकी रैगी,

सै जूझ भरतपुर मर ज्यावाँ॥

पाछा जावाँला किण मूँढे,

बरबादी मोटी होयी है।

जाटाँ रै हाताँ गोराँ री,

पग-पग पर लोथाँ सोयी है॥

मरियाँ रा मूँढा उजळा है,

जीवाँ हाँ मरै सरीसा हाँ।

भय स्यूँ भाजा हाँ घड़ी-घड़ी,

दुनियाँ नै भूँडा दीसाँ हाँ॥

अै बोल लेक रा लाज भर्‌या,

फोजाँ में लाय लगा दीनी।

थाक्योड़ाँ में भर दियो जोस,

मुड़दाँ में ज्यान जगा दीनी॥

चोथै फेरै बिरगेड पती,

‘मन सन’ मोटो हमलो कीनो।

रळ मिळ काळी गोरी फोजाँ,

चढ़ जोर मोकळो कर लीनो॥

जय बोल राम रघुवँसी री,

गढ़ वाळा गगन गुँजावै हा।

अै जाट काळ री जाड़ बण्याँ,

पग आगै धरताँ खावै हा॥

रण खेत अगन ज्यूँ धधक रयो,

गोळी गोळाँ री लाय झड़ै।

जिण रै लागै बो डिगै इयाँ,

जाणै कटियोड़ो रूँख पड़ै॥

बै दुरग चढै पड़ता दीखै,

जे माँय बड़ै मार्‌या जावै।

भुरजाळा जोध भरतपुरिया,

किण बिध ही काबू नयीं आवै॥

खप्पर भर दियो जोगण्याँ रो,

धरती नै राती कर दीनी।

जळ भरी किलै वाळी खायी,

लोथाँ स्यूँ चोखी भर दीनी॥

कर जोर घणाई जूझ्या पण,

छेकड़ गोराँ रो बळ थाक्यो।

धन-धन तूँ धरा भरतपुर री,

हिंदवाणै रो पाणी राख्यो॥

दो मास हुयो सँगराम जबर,

नयीं खबर रात दिन री लागै।

गोरा फीटा बण घड़ी-घड़ी,

कूटीजै डर पूठा भागै॥

दुरगती फिरँग्याँ री होगी,

जाँटाँ रै जबरै हाताँ स्यूँ।

बै होस भूलग्या भालां में,

धरती जीतणीयां घाताँ स्यूँ॥

गोरी फोजाँ में हाय-हाय

हारयोड़ो लसकर धूजै हो।

मुख करियाँ नीचो लाट ‘लेक’

लजखाँणो पड़यो अमूजै हो॥

जाटाँ रै गढ में ऊछव हो,

जीत्या रँग रल्याँ मनावै हा।

रणजीत सिंध रा जय कारा,

गूँजे हा, गगन गुँजावै हा॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोताँ ,
  • सिरजक : गिरधारीसिंह पड़िहार ,
  • प्रकाशक : पड़िहार प्रकाशन बीकानेर
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