किणी बडेरे कवि

ठीक कही के-

कवि कुहाड़ौ पाछणौ

जे मुख

झूटा होय

गळियां में पड़िया रहे

बात पूछे कोय

सौ टंच सांच कही

निवण करूं उण कवि नै

बार बार निवण करूं

अर उण कवि री बात

धकै बधातौ कहूं के-

जका दिन नै दिन कैवै

रात नै रात कैवै

मतळब के बात नै बात कैवै

कथणी अर

करणी में भेद नीं राखे

स्वारथ पूरण हेत

झूट नीं भाखै

वै कवि है

बाकी के 'ठा कांई है

स्रोत
  • पोथी : अेक दीवौ अंधारा रै खिलाफ ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर भारती ,
  • प्रकाशक : मरुवीणा प्रकाशन जोधपुर