कठै गई

वा पीळौड़ी परभात

जिण मांय घर-घर

घमीड़ उठता घरटी रा।

उण सीधाळै झूंपड़ै में

उछळ कूद मचावती

चिड़कलियां

ऐवड़ रै उण बाड़ै में भैंकती

भौळी भेड़ां

तूंताड़ियै सूं बारै आवण नै

उतावळा पड़ता घैटिया,

खीझता जाखौड़ा

झैरावती सांयढ

पैंकड़े में बांध्यौड़ा करहा

चारों कानीं हाकलों सूं

गूंजतो आभौ।

पिणघट माथै जा पूगती

उतावळी पिणियारियां।

स्रोत
  • सिरजक : नाथूसिंह इंदा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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