देस नै कांईं देर्या हौ,
विरासत में, म्हारा माईत!
चोरी, डकैती, फरेब, झूठ
भ्रस्टाचार, पापाचार, चापलूसी, चमचागिरी?
म्हे ईं गळेड़ी संस्क्रती रौ
सोधन कठै तक कर लेस्यां म्हारा बीरा!
पतौ नीं, ईं सत्यानासी रै बूंटै रा बीज
कुण फेंकग्यौ म्हांरी धरती पर;
कित्तौ ई करल्यौ बार-बार फाड़ करणै पर
कस्सी ऊं खोदणै पर
सुहागौ लगाणै पर ई
औ बीज दिन दूणौ बध र् यौ है
अर म्हारली चांवती फसल उगण ऊं रैगी।