जीवण खो दियो बातां में

निंदाळु मीठी रातां में

खातां में आंक लिख्या कोनी

कोरो पाठ पड़्यो रैयो।

सागो कर मिनख अनांड्यां रो

मनसोबो गांव गुवाड़्यां रो

आडो जद जड़्यो किंवाड़्यां रो

बा खोल्यो कोनी मैं खड़यो रैयो।

जायो जद जीवण रो पाठो

देख्यो तो फाट्योड़ो काठो

चाल्यो पण जड़ियोड़ो झाटो

खुलसी मैं जाण्यो, खड़्यो रैयो

आजाण खुल्यो झाटो झटदे

पाठो संपाठो बणग्यो

आसा कर हिम्मत नै राखी

नगजड़्यो जठै जड़्यो रैयो

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1987 ,
  • सिरजक : सूर्य शंकर पारीक ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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