जीत्यो कुण-कुण हारयो?

अेक जिको कै स्सो कीं गमायनै

वगतो जावै मुळकतो

बीजो वो कर नै स्सो कीं हासल

टळकावै आंसू

संच्यो जिकै भर जिंदगी

ग्यान अर विग्यान

होय रैयो वो

दिवलै रै तळै ज्यूं

जोत-विहूण

सोधै च्यानणो,भटकै बिचारो

घेर्‌या जीत रा घुड़ला

गाया गीत गीरबै रा

पण कठै होयो विजै

भतूळै में भटक्यो

बीच-बीचाळै अटक्यो

तप्यो,घण सीज्यो

पण, कांईं जीत्यो?

जीतै वै

जिका आपै रा ओढ़ै मुगट

रैवै हरमेस आगै

करण नै खुद नै अपरण।

स्रोत
  • सिरजक : महेंद्र कुमार मोहता ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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