ओलखूं कीकर थनै

थारै चैरै सूं

कीकर करूं थारी पिछाण

आं दिनां

वगत घड़ै उणियारा

आपौ आप रै होत बंधिया

सगला मिनख

नित नुंवा चैरा ओढै।

म्हारी गत-दुरगत नै

नीं समझ सकै थूं,

ओळखूं हूं थनै

पण म्हारै अंतस री

लीपियोड़ी भींतां

म्हारी निजर नै बरजै

अर उण अंधारै

म्हारौ कालजौ कांपण लागै।

घणौ दोरौ हुवै

सेंधै मूंडै कीं कैवणौ

पण थारौ उणियारौ

हरमेस रैवे म्हारै सामी

म्हैं परबस

अेक आदू उडीक मांय

म्हारी दुरगत नै भोगूं

अर वगत घड़िया उणियारा

म्हारै सामी देख

हड़-हड़ हसता जावै

म्हैं खुद री ओळखाण नै

अेकर फेरूं अरथावण लाग जावूं

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : सत्यदेव संवितेन्द्र ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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