पग डांडी रा मोड़ मिनख रे

उणियारे री आरसी।

अण होणी नै नमस्कार है

होणी नै कुण टाळसी

बीज में रूंख रो रूप पळै

पण कुण सै सांच ढाळसी

चेते रा चितराम सजग

सुण-कुण काया नै ठारसी॥

आभो है अणजाण

धरा पर आखर कंवळा है

चूलै अण बुझ आंच

चेत रा मारग अंवळा है,

भभक उठैली हाय —लाय

जद कण-कण मन रो धारसी॥

बळती चाली पवन

बिरछ रा पीळा पड़िया पात

फळ मान्दा कद बीज बणैला

माळी करियां घात

चेत मानखा—रांख रुखाळी

लोग मिनख नै मारसी॥

जगत तारणी मिनख मारणी

सगती दावैदार है

म्है जीवां से काल मरेला

दुनियां बीमार है

धर रा लोभी लाभ देखसी

बिना मिनख रै सारसी॥

बाळू-भींत अकल री ओछी

पल भर री है पावणी

मान करै में-आंधी रो

लागै है अळखावणी

काठ री हांढी चूले चढ़सी

बळ-जळ आपो हारसी॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1981 ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • संपादक : राजेन्द्र शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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