घर मयं छौरी मोट्यार थई है

जवान छौरौ नोकरी नी आस मअें

दाड़े-दाड़े हैयाटी र्‌यौ है

घरवारी तगारं तौकी-तौकीने

बुइलू थई गई है

खौंणां मअें टूटी खाटली मयं पड़्‌यं

डोहा-डोही नी आंखं मयं जीव आवी ग्यौ है

करजौ मांगवा वारा रोज

आवी-आवी बीयाड़ीने

जाई र्‌या हैं

कैने आलुं

आलवा बल्ले कंय होवे तौ आलुं

कई’क वखत विचार आवे

घासतेल रेड़ीने बरी मरूं

पण घासतेल क्यं थकी लावूं

क्यं’क तौ जूवे घासतेल लाब्बा सारू

अेक नेंदर अती

पण अे वैरण थई गई

वेचाती अे न्हें मलती है के

उधार अे न्हें मलती।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : नयनेश जानी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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