म्हैं सुणतौ आयो हाल ताईं
पुराणै बगत मायं कोई द्रोणाचार्य हो
जिको अर्जुन जिस्या जोधावां नै
देवतो धनुर्बिद्या री सीख
म्हैं आ भी सुणी है
कै बीं बगत मांय
भगवान ई ले राख्यो अवतार
ईं धरती माथै मिनख रूप
पाप अर लोगां रा कस्ट
मिटावण रै सारू
म्है आ बात भी जाणूं कै
ईं बगत रा घणकरा सा लोग
करै बिस्वास आं सगळी बातां पर
म्हैं पण पूछणौ चावूं
थां लोगां सूं पाप री परिभासा
कुंण कर्यो पाप
बण एकलव्य जिकौ द्रोणाचार्य रा
पगां मायं पड़'र मांगी
ज्ञान देवण री भीख
का बण जिकै मार दी ठोकर
एक भोळै भाळै भणेसरी रै
जात पाँत री लीक खींच'र
बात अठै ही खतम नीं हुवै
बो निषाद रो बेटो बिना गुरु ई
लागग्यो करण नित री मे'नत
जद बिना गुरू ही बणग्यो
एकलव्य लूंठो तीरंदाज
पची कोनी आ बात
धरम रा रूखाळां रै
आ पूग्या लेवण नैं दखिणा
मांग लियो अगूंठो निसरमा होय'र
भोळै भाळै एकलव्य सूं
ईं सूं मोटी बात तो आ हुवै
दे नाख्यो अगूंठो हरख रै साथै
ऊंचो बणनै नीचां रै साम्हीं
सईकां सूं चाली आवण वाळी
ऊंच अ'र नीच री परिभासा ही बदळ न्हाखी।