औ पौह रो तावड़ो
बियां ई है
जियां म्हारी
मुट्ठी मांय रेत,
जकी निसरती जाय रैयी है
म्हारी मुट्ठी सूं,
दोपारां पछै
ल्हुक जावै बो
अर ठंड बधती जावै
जियां मुलक री गरीबी,
सियाळै री ठंडी रात
म्हनै डरावै पण
दिनुगै ऊगतै सूरज री
गरमी
म्हारै मन अर डील नै
बंधावै थ्यावस
कै ऊगतो सूरज
फगत गरमास ई नीं
नुंवी जिंदगी जीणै रो
संदेसो भी देवै।