उजड़्योड़ै कुंभाणै री
गुवाड़ में ऊभो
ओ पींपळ
फगत एक रूंख कोनी,
गांव रै बडेरा गळांई है
जको लारै छूटग्यो।
इकचाळीस रै साल
तोपाभ्यास सारू
जिण चौंतीस गांवां री जमीं
सेना नै सूंपीजी
उण में अेक हो कुंभाणो।
गांव जैड़ो गांव हो कुंभाणो!
जीवतो-जागतो
अेक काळजै धड़कतो गांव!!
सवा सौ घरां री बस्ती में
जठै पड़तख दीसता
जूण रा हजार रंग।
ठाकुर जी रै मिन्दर रै नगाड़ै सागै
ऊगतो हो दिन
अर इण पींपळ हेठै ई
गुरबत बिचाळै बिसूंजतो...
भोर सूं आथण तांई
खेत रो खोरसो
डांगरां री टंडवाळी
आसरां री सार-संभाळ
तीज-तिंवार रा नेगचार
सांचाणी सतरंगी हो
जीवण रो आंगणो।
पींपळ रै डावै पासै
भंवरियै कुअै माथै
पणिहारियां री लैण कोनी टूटती।
गौर पूजण
जद गांव री छोरियां-छापर्यां
पींपळ हेठै भेळी हुय’र
गीतां रा सुर छेड़ती
उण घड़ी पींपळ रै हिवड़ै
उमाव मावड़तो कोनी।
काती में
भोरांनभोर
गांव री लुगायां
भजनां भेळी
पैलपोत
पींपळ ई सींचती।
पण अबै कठै बो कुंभाणो?
हणै तो साव उजाड़ है
ओळूं नै टाळ’र।
जमींदोट हुयोड़ा ढूंढ़ा
बिना छात रा आसरा
बिना भींतां री बाखळ
माणस बिहूणो
बांडो बूचो गांव
घणो अणखावणो लागै।
अबै कोनी सुणीजै
दिन छिपतां ई
बावड़तै पसुवां री टण-टणाट!
कोनी दीसै
पोसाळ मांय टाबरियां रा टोळ...
फगत हवा री सूंसाट
मून सागै
बाथेड़ो करती लखावै।
कुंभाणै रै अेनाणां री
साव अेकलो
रुखाळी करतो
बूढ़ियो पींपळ ई
अणमनो-सो दिन टिपावै,
जाणै डोकरो
उडीकतो हुवै
कै कदी कोई
नवो परणीज्योड़ो जोड़ो
गंठजोड़ै री जात रै मिस
उणरै हेठै आय’र बैठ जावै
अर बडेरो पींपळ
आसीस रै ओळावै
आपरी बच्योड़ी उमर सूंप’र
मुगत हुय जावै।