तूं हिमाळै-सो ऊंचो

झुक नीं सकै

म्हैं जमीं-सी जमियोड़ी।

ठीमर ठैरियोड़ी

उड़ नीं सकूं

पण देख

थां सूं मिलण नै उडै है

रुंआळी म्हारी

बंभूळियौ बण’र।

तूं झुक तो नीं सकै

पिघळ तो सकै है

गंगा री गत

म्हां सूं मिलण नै!

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम