बेधड़कै-बेखड़कै

सरेआम

चौगड़दै

भंवैं झूठ।

म्हैं देख्यो है

जनां-कणां

थाणां-दफ्तरां

न्यावरै काठ गोळे मैं

ऊभ्यो झूठ।

कई बार तो

संसद ताईं ढूक जावै

धोळा गाभा पै’र

काळियो झूठ

धोळो बण।

सांच बापड़ो

घर में

इण डर में

पड्यो है मून

पगां जळेबी गूंथ

गोखै गोखडै सूं बारै।

म्हैं सोचूं

सड़क माथै

कद आसी

बेधड़कै-बखड़कै

सरेआम

चौगड़दै सांच।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : नरेश मोहन ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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