माणसबणणौ चावै-

हरिचंद आज रौ आज

पण

लावैला कठा सूं

अंतस में-

ऊजळी सतवाळी आवाज।

माणस!

थूं थारौ

जीवण जी सकै

झूठ रै झणकारै

तो क्यूं आफळै?

फगत

दुनिया नै दिखावण

साच रै

असेंधै उणियारै।

स्रोत
  • सिरजक : गजेसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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