ऊपर छायो लीलो अंबर

नीचै पसर्या धरती सागर

नित-नित सरसावै ये खुलकर

पण सींव थरप तूं दिया दाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

हिरदै में चाव घणो छायो

पींदै जाकर मोती ल्यायो

पण भेद बूंद से ना पायो

सारो सागर तूं लियो थाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

मन में जाणै परबी पा ली

तेरा गोता जासी खाली

हिरदै री गंगा सुस चाली

यो नीर नहीं या विकट आग

तूं जाग जाग मिनख जाग

विद्या बळ पा तूं गरबायो

पण ग्यान तेरो के गुण आयो

पाणी मथ कुण इमरत पायो

झूठा यै सारा उडै झाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

तूं नित कूवो खोदयां जावै

पण प्यास तेरी मिट पावै

आखर के हाथ तेरै आवै

चोरां रै जावै चोर लाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

माया रै मद में चाव भर्यो

ऊंडो हिरदै रो रस विसर्यो

जुग जुग रो सिर पर भार धर्यो

जाण्या ना जग रा भोग त्याग

तूं जाग जाग मिनख जाग

पूरब पच्छिम रा ओर छोर

मिलज्या दोनूं हो रंग बोर

यै सूत कई बण अेक डोर

ले नाथ काळ विकराळ नाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

अब तो सोनै रो जुग बीत्यो

तेरो सारो संचै रीत्यो

धारै मत कुण हास्यो जीत्यो

जाग्या माटी रा आज भाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

या भेद भावना मत त्यागै

तो प्राणां में इमरत जागै

नारायण आवै नर आगै

तूं प्रेम मगन हो खेल फाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

काळा गोरा भूखा धाया

निबळा-सबळा गौरवछाया

पिरथी माता रै मन भाया

सारा मिल बदळै आज पाग

तूं जाग जाग मिनख जाग

जण-जण में चेतनता पसार

सुगणो सोयो या गूढ तार

गूंजण लागै कर रस पुरकार

अंबर में चालै अमर राग

तूं जाग जाग मिनख जाग

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : मनोहर शर्मा ,
  • संपादक : अनिल गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा
जुड़्योड़ा विसै