आभै सूं उतर'नै तिरसंकु
धरती माथै आयग्यौ
उण सोच्यो
हरमेस लटक्यो रैवण सूं
आछो है पग बांध’र चालणो
अबै वो धरती री
अेक लूंठी बिरादरी सागै
पग रड़-भड़ांवतो चालै
क्यूं कै उणरै (भी) निरवाळा पगां में
बैड़्यां पेहरादी
धरती रा कीं औगणगारा मिनखां
तिरसंकु अर उणरा सागीवाळ
नीं जाणै बैड़्यां री अंवळाई
चावतां थकां भी वै
नीं उबर सकै
सांकळ री कड़ियां सूं
अेक थोथो भरम वांरै
च्यारुं कानी गळबांथ घाल्यां
हांसै कलखारी हेंसी
हेंसी रै खणखणाट में
बिसर जावै वै
मुगती री सांचली बात
कै बंध्योड़ा तो खाली पग है
मुंहडो-आंख्यां नै हाथ तो निरवाळा है
जिण सूं वै पगा रा बंधण
काट नै मुगती पाय सकै है।