अजै घणोई बगत है,

फेर कर लेसां!

क्यूं करां सोच,

क्यूं करां फिकर।

इण झूठी थावस सूं

क्यूं बळगावै मन

म्हारा बटाऊ!

क्यूं बैठो है अचेतण?

क्यूं बैठो है ठालो?

क्यूं नीं तोड़ै मून?

बगत तो बगत है...

बधणो इणरो काम

नीं उडीकै अर

ना ईं करै किणी रो सागो!

फेर किणरै भरोसै

म्हारा बटाऊ

करै बगत आगो।

छोड भरोसो

होय जा ऊभो

थूं थारै

पुरखारत रै पाण

कर जोरामरदी

बगत रै सागै

कर लै थारो नांव।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : नमामीशंकर आचार्य
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