सूरज रा रथड़ा लारै

समै नी बदले

मिनख पण बदल जावै

बरसां बरस तक कैवता रेवा

म्हाणां म्हाणां

अचाणचक वां मूंडा सूं

मूंगोठा उतर जावै

अजब-गजब अणूंठा व्है

अे संबंधा रा डोरा

खेंचों तो टूटवा रो डर

ढील दो तो उळज जावै।

स्रोत
  • सिरजक : अनुश्री राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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