बीत्यै समै में मायत
घर सूं छोरी—छापरी नै बारै
नीं जावण दैवता
कैवता काल’न कोई
इसी—बिसी बात होज्या
परायो धन है।
फेर समै पलटो खायो
टेम बदळयो अर
परायो धन आपरो सो लागण लाग्यो
छोरियां—छापरियां घर सूं बारै निकळी
पढ़—लिख’र पगां माथै खड़ी होवण लागी
पण लागै है
जूनौ टेम पूठो आसी
अर
परायो धन फेरूं घर मांय
कैद हो ज्यासी
क्यूं’क आज रै मिनखां मांय
अेक अेड़ौ भेड़ियो बैठो है
जिण रै भारूं डीकरी चावै आठ री हो
या डोकरी साठ री
उण री वासना री भूख किणी नै नीं छोडे।
सांची कैयी है कै
परिवर्तन रौ पेड़ो जठै सूं सरू होवै
बठै पूठो पकायत आवै।