बात कोनी के बखत कोने म्हारा कनै।

बखत तो अतरो है के ऊँघतो रहेउँ हूँ दनभर माचा पे पड़्यो-पड़्यो

देख सकूं अड़े-भड़े गंड़कड़ा का हुच्या खेलता तका

दूर डूंगर के पाछे सूरज नै घरे जाते देखूं हूँ

उँदाळै-सियाळै की साख में हुयो मुनाफ़ा को हिसाब

जीवन मे हुयो हर घाटा को हिसाब राखू हूँ।

बैठो बैठो खँखारतो रहेउँ हूँ अठिने-उठीने

अतरी जागीरी को धणी हूँ पण

दे सकूं कोई आपण भड़े बेठबा की ठोड़।

स्रोत
  • सिरजक : उषा राजश्री राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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